Friday, April 19, 2013

वार्षिक समीक्षा : कुछ हो तो ऐतबार भी हो कायनात का.

परफोर्मेंस अप्रेजल, इस शब्द युग्म की सटीक और सुन्दर हिन्दी क्या होगी ? ऐसी जो जुबान पर भी चढ़े। अपने अर्थ  मे तो यह शब्द जुबान पर बसने से रहा। हम दिन रात अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ या उनकी निगाह में रहते है। हमारी हर गतिविधि उन्हें मालूम होती है। हमारी यात्राएं, ली और न ली हुई छुट्टियां उनकी बदौलत है। सुख, उत्साह, भाग - दौड़, सकारात्मकता जितनी उनकी निगाह पर , हम उतने ही आगे। उत्तेजना, दुःख, बेचैनियाँ उनसे ओझल रखना भी एक गुण। सच उनके सामने झूठ उनसे दूर। सब कुछ से वो अवगत फिर भी सालाना परफोर्मेंस अप्रेजल होता ही होता है। एक प्रारूप ( फ़ॉर्मेट ) मिलता है जिसमे आपको लिखना होता है की इस साल आपने क्या किया और तब आपको ख्याल आता है अधूरी कहानिया लिख पाए, कविताएं अधूरी पढ़े, उपन्यास दर उपन्यास उछलते रहे, सपने देखे ये जानते हुए कि इनका होना जाना कुछ नहीं,,,,इस तरह हमारे जीवन से एक वर्ष और काट लिया गया। हम कोई पेड़ हो जैसे कि वर्ष वाली टहनियां एक एक कर कम होती जा रही हो। 

प्रारूप को देखते ही मन हदस जाता है। पहला ख्याल - हमने आखिर इस साल किया क्या ? उल्लेखनीय था कुछ ? फिर दूसरा ख्याल - लेकिन दफ्तर के सिलसिले तो रोज चले। सुबह-ओ-शाम चले। कुछ तो किया होगा। तब हम किए गए कार्यो को याद करना शुरू करते है। बतौर रचनाकार, पता नही ऐसा क्या है कि मुझे रोजगार के दौरान किए गए काम उल्लेखनीय नहीं लगते।    फिर भी एक-एक  कर उन्हें मन में सहेजता हूँ, लिखता हूँ, मिटाता हूँ . पूरा साल याद आता है। अपराधबोध सबसे अधिक याद आते है। न किए गए काम याद आते है और वो मौके याद आते है जो हमारे हाथो से सिर्फ इसलिए निकल गए क्योंकि हमारे सिर्फ दो ही हाथ थे और काम सुरसा के मुह की तरह विकराल। रोजाना के काम काज के बीच ख्याल आता है, भाई अभी आत्महन्ता बाते न विचारों। अप्रेजल का प्रारूप शानदार भरा जाना चाहिए और वो भरा जाता है। मन फिर भी उदास ही बना रहता है। 

वरिष्ठ अधिकारी बुलाते है, बाते करते है। वो, जिनकी उम्मीदों पर शायद ही कभी खरे उतारे हो, वो खुद आगे बढ़ कर तारीफे गिनवाते है, मेरे किए गए काम मुझे भी बताते है, सराहते है, मुझे एक पल को अच्छा लगता है। लगता है क्या मैं वाकई अच्छे काम करता हूँ। पर एक एहसास साथ रहता है, साल दर साल बीतते जाने का। तुझसे भी दिल फरेब है गम रोजगार के वाली तर्ज उदासी के बोल की तरह बजती रहती है। घामड़ अकेलापन आपके इर्द गिर्द तमाम खराब पल बुनते रहता है। आप अगले साल की तैयारियों में जुट जाते है। नौकरी का छोड़ना मुल्तवी होते जाता है। लिखना भी या शायद लिखना ही।